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प्रकृति पर कविता | Hindi Kavita On Nature

V singh
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Hindi Kavita On Nature :- प्रकृति यानी पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से होने वाली सभी चीजे जल, हवा, मिट्टी, पेड़ - पौधे, नदिया, समुद्र, जंगल, झरने, पहाड़, खेत, पशु - पक्षी और यहां तक की हम भी प्राकृतिक है, क्योंकि हमारा शरीर 5 तत्व जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी से मिल कर बना है।

प्रकृति से जुड़े बहुत सारे कवि हुवे है, लेकिन सुमित्रानंदन पंत जी को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है, जिनका जन्म उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जिले के कौसानी ग्राम में हुवा था।

Nature Poem In Hindi
Nature Poem In Hindi 

आज इस लेख में हम भी प्रकृति पर कुछ कविताएं लेकर आए हैं, जो शायद आपको पसंद आ सकती है, तो चलिए Poem On Nature In Hindi शुरू करते है।

प्रकृति पर कविता | Hindi Kavita On Nature 

प्रकृति दिखने में जितनी सुन्दर है, उससे ज्यादा अपने अन्दर अनेकों रहस्य लिए हुवे है, प्रकृति के खेल को समझना बहुत मुश्किल है, लेकिन इन्सान आज अपने विकास के चलते अनजाने में ही सही पर प्रकृति के साथ खिलवाड़ तो कर रहा है।

Poem On Nature In Hindi 

प्रकृति की महिमा न्यारी 
चारों तरफ सुंदरता फैली।
 
उगते सूरज की किरणों से 
चमक उठता पुरा संसार 
पक्षियों की चहचहाहट से 
सुबह में आती एक नई जान।
 
पहाड़ों से निकलती जल धाराएं 
मिलकर झरने बनाती 
छल - छल गिरते झरने 
नदी बनकर बहते जाते ।

नदिया बह - बह कर 
भूमि को हरा बनाती जाती 
फिर आगे जाकर एक साथ मिल 
एक विशाल सागर कहलाती।

 ढके रहते बर्फ से पहाड
कही जंगल घने होते 
 हरे घास के मैदान कही 
कही मैदान बंजर होते ।

 धूप से तपती धरती में 
बीज सोए रहते 
बादलों की गर्जना सुन 
वो नीद से जग जाते 
फिर बारीश होती रिमझिम, रिमझिम 
जमीन में नमी आ जाती 
बीज अंकुरित होकर 
पोंधे बनकर उपर आते।

बसंत ऋतु के आ जाने से 
प्रकृति के सौंदर्य का पता चलता 
 रंग बिरंगे फुल खिलते 
सुगंध से पूरा संसार महकता।

प्रकृति की महिमा न्यारी 
चारों तरफ सुंदरता फैली।
        लेखक - V Singh 

झरना गिर रहा 

झरना गिर रहा छल छल छल 
पास से देखने का मन करता है 
पड़े धुप जो जोरों से 
झरने में नहाने का मन करता है 

आवाज झरने की सुन 
मुझे गाने का मन करता है 
यही बैठ दिन भर इसको 
निहारने का मन करता है 
झरना गिर रहा छल छल छल
पास से देखने का मन करता है।

पहाड़ से गिर कर झरना 
जमीन में बहता जा रहा 
दूर जा कर एक बड़े सरोवर में समा रहा 
मै व्याकुल हु देखने को 
ये सरोवर से कहा जायेगा।

लगता छोटी, छोटी नदियों में बंट 
सुखी जमीन को यह नहलाएगा 
झरना गिर रहा छल छल छल 
पास से देखने का मन करता है 
पड़े धुप जो जोरों से 
झरने में नहाने का मन करता है।
लेखक - V Singh 

खड़ा पहाड़ 

खड़ा सदियों से वो ऐसे 
पहरेदार हो दुनिया का जैसे 
शरीर में लाखो टन का भार 
सिर ऊंचा और शरीर तान 
खड़ा सदियों से वो ऐसे 
पहरेदार हो दुनिया का जैसे ।

नदिया जिसके तन से निकले 
वनस्पतियां जिसके बदन से लिपटे 
पशु - पक्षियों को वो आश्रय दे 
जड़ी बूटियों से भंडार भर देता 
खड़ा सदियों से वो ऐसे 
पहरेदार हो दुनिया का जैसे ।

जिससे हवा भी टकराके दिशा बदल दे 
बादल भी टकराके बारिश कर दे 
जो बदलो की गर्जना से भी जो ना डरे 
तूफानों का वो डटके सामना करे 
अपने जगह से बिलकुल न हिले ।
पहाड़ है वो पहाड़ है वो 

हिम्मत जो हममें भर देता 
स्थिर रहना जो हमे सिखाता
प्रकृति का अनमोल हीरा है वो 
पहाड़ है वो पहाड़ है वो ।
          लेखक - V Singh

पेड़ नही होते तो 

पेड़ नही होते तो हम नही होते 
न पशु पक्षी होते न जानवर होते 
पेड़ नही होते तो जल नही होता 
बिना हवा, पानी के जीवन नही होता 
पेड़ प्रकृति की अनमोल देन है 
इसको बचाना हमारा धर्म है।
          लेखक - V Singh

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आशा करते है, आपको यह प्रकृति से सम्बन्धित कविताएं पसंद आई होगी अगर आप भी प्रकृति प्रेमी हो और अपनी कविता इस लेख में डालना चाहते हो तो हमें इमेल के जरीए भेजे और अपना नाम भी भेजे धन्यवाद 

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