-->

इंसानियत पर कविता | Insaniyat Par Kavita

V singh
By -
0
इंसानियत पर कविता(Insaniyat Par Kavita) - इंसान इस दुनिया मे सबसे बुद्धिमान प्राणी है, ओर इंसान की इंसानियत ही उसकी पहचान है एक समय था जब इंसान प्रेम भाव के साथ सभी के घुल मिलकर रहता था, लेकिन समय के साथ -साथ इंसानियत के अंदर लोभ,लालच ने जन्म लिया जिनके चलते इंसान अपनी इंसानियत को छोड़ कर हैवानियत को अपना रहा इस पोस्ट मे हम इंसानियत पर कविता लेकर आए है , आशा है आपको जरूर पसंद आएगी,
Insaniyat Par Kavita
Insaniyat Par Kavita 

इंसानियत पर कविता - इंसानियत अपना ए इंसान तू 

इंसानियत  अपना ए इंसान तू
इंसानियत तेरी पहचान है
अपना के हैवानियत को तू
क्यों बन रहा हैवान है
न प्यासे को पानी पिलाता
न भूखे को खाना खिलता
फिर क्योंकि तू अपने आप को इंसान हें कहता
जरूरत मंद की मदद करने का ऐसा रास्ता अपनाता
उसकी मदद के साथ साथ उसका तमाशा बना देता 
अब कहा इंसान मे इंसानियत बाकी है
आज का  इंसान इंसानियत दिखा के धोखा दिया करता  है
ना दर्द दिखता इसे किसी पीड़ित का
ये तो पीड़ित का भी मजाक बना दिया करता है
आज हर इंसान अपने आपको
अच्छा ओर सच्चा दिखाने मे तुला हुवा
इसी चक्कर मे वो अपने अंदर अनेकों झूठ है छुपा रहा
एक समय था जब इंसानों मे इंसानियत होती थी
हर कोई एक दूसरे के सुख -दुःख को समझता था
ये ही इंसान की इंसानियत  होती थी
लेकिन अब तो बस आश है इस दुनिया के
किसी  कोने मे इंसानियत किसी के अंदर  पनप जाए 
जो इस दुनिया को इंसानियत का सही अर्थ समझा पाए|

Insaniyat Par Kavita- इस कलयुगी भरी दुनिया में 

इस कलयुगी दुनिया में
कोई सच्चा इंसान नजर आए 
जो इंसानियत क्या होती है
पूरी दुनिया को समझा पाए 
हर तरफ इस दुनिया मे
झूठ फरेब है चल रहा
अपने आपको इंसान कहने
वाला इंसान अनेक पाप है कर रहा
हैवानियत है भर गई 
अब इंसानों में कूट कूट  कर
आज  इंसान ही इंसान का दुश्मन बन रहा 
छोटी -छोटी बात मे झगड़ा है कर रहा
फिर कहा इंसान में इंसानियत है बाकी
ये दुनिया इंसानों से नही हेवानो से है भरी पड़ी|

इंसानियत पर कविता -इंसानियत का नकाब 

सड़क किनारे एक कबूतर
चोट खाके गिरा हुवा
न कबूतर उड़ पा रहा
ओर भूख प्यास से तड़प रहा
तभी उसने अपने ओर
एक इंसान को आते देखा
इंसान को अपनी ओर आते देख
उसकी जान मे जान आई 
बचा लेगा ये फरिश्ता ये कबूतर सोच रहा
इंसान ने कबूतर को बड़े प्यार से उठाया
उसके घावों मे घर जाके मलहम है लगाया
खाना है उसको खिलाया पानी है उसको पिलाया
कबूतर ने  इंसान की इंसानियत देख
भगवान से उसके लिए प्राथना की 
लेकिन सच्चा था कबूतर जो उस इंसान 
को ना समझ पाया भोली सूरत के पीछे
छिपे हैवान को नही देख पाया 
उस इंसान ने शाम होते ही 
इंसानियत का नकाब  हटाया 
उसके हैवानियत  को देख कर
कबूतर उसके सामने बहुत गिड़गिड़ाया 
पर उसको क्या फरक पड़ता उसने
कबूतर को काट कर बड़े मजे से खाया 


दोस्तों अगर आपको ऊपर लिखी हुवी इंसानियत पर कविता पसंद आई तो इस कविता को अपने दोस्तों के साथ शेयर करे ओर  अच्छे कमेंट कर हमें ऐसी ही कविता ओर लिखने के लिए मोटीवेट करे 'धन्यवाद '

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

Please do not enter any spam link in the comment box.

एक टिप्पणी भेजें (0)