हमारे समाज मे बहुत सालो से कुछ कुरीतियाँ या यू कहे की कुछ प्रथाये चली आ रही थी जिनके चलते समाज के महिलाओ वर्ग ने बहुत अत्याचार सहा है कुछ प्रथाये तो समय के साथ- साथ गैरकानूनी तौर पर बिलकुल ही खत्म हो चुकी है लेकिन एक ऐसी प्रथा है जो गैरकानूनी होने के बावजूद समाज मे चोरे छुपे चल रही है जिसको दहेज़ प्रथा के नाम से जाना जाता है दोस्तों दहेज़ देना या लेना एक अपराध है ये लगभग सभी लोग जानते है फिर भी कुछ दहेज़ के लोभी है जो दहेज़
बडे ही शान से मांगते है ओर अगर दहेज़ मे कुछ कमी पेशी हो तो बहु पर अत्याचार करते है जो एक अपराध है,
दोस्तों आज हम इस पोस्ट मे दहेज़ प्रथा पर कविता(Poem on Dowry System) लाये है जिसमे ये बताया गया है की दहेज़ प्रथा समाज के लिए कलंक है ओर इसे जड़ से मिटान जरुरी हो गया है |
दोस्तों निचे दी गयी दहेज़ प्रथा पर कविता पिता की प्यारी बेटी मे शैतान दहेज़ के लोभीयो को कहा गया है ओर इस कविता मे डार का मतलब जोर से रोने से है |
दहेज़ प्रथा पर कविता
दहेज़ देना या लेना अपराध है
ये हमें सबको बताना है
दहेज़ माँग रहे वर पक्ष को
जेल तक पहुंचाना है
दहेज़ के कारण जल गई
बेटियों को न्याय दिलाना है
न खरीदेगा कोई पिता दहेज़ देकर
अपनी बेटी की खुशियाँ
वर-वधु को आगे आकर अपने
परिवार को ये समझाना होगा
दहेज़ देना या लेना एक अपराध है
ये उनको बताना होगा
दहेज़ के चक्कर मे न किसी बहु
पर अत्याचार होगा
न किसी का घर उजड़ेगा
और न किसी बेटी की जान जाएगी |
दहेज़ पर कविता - पिता की प्यारी बेटी
दहेज़ दिया एक पिता ने मुँह माँगा
अपनी बेटी को खुश देखने के लिए
पर कुछ ही दिन दहेज़ के
पैसो से मौज उड़ाई शैतानो ने
पैसे खत्म हुवे तो वो बहु
को दिन रात खरी खोटी सुनाने लगे
बेटे के साथ मिलकर
बहु को सताने लगे |
रोज रोज वो बहु के सामने
नई - नई माँग रखने लगे
अपने पापा से बोल ये पहुँचा
करके उसे डराने लगे |
लेकिन बेटी क्या बोलती
उस गरीब पिता से
जिसने पहले ही दहेज़ के लिए
अपनी जमीन जायदाद बेच दी
फोन आता था जब पिता का
वो आँशु पोछ उठाती थी
अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के बारे मे
पिता को नही बताती थी
खुशी - खुशी वो पापा से
बाते करते रहती थी
झूठ -झूठ उसका परिवार बहुत अच्छा है
ये बताया करती थी
फोन रखते थे जब पापा
वो खुद को रोने से नही रोक पाती थी
वो मन के अंदर ही अंदर
जोर से डार लगाती थी
माँग पूरी न करने पर
शैतानो ने एक योजना बनाई
बहु को मारने के लिए उसके
कमरे में आग लगायी
चिलाती रोती रही बेटी कुछ देर
पापा मम्मी मुझे बचाओ
बोलती रही कुछ देर
लेकिन शैतान थे वहा तो
उनको क्या फरक पड़ता
उनको तो बस दहेज़ ही दहेज़
चारो ओर था दिखता
कुछ देर में जब बेटी का
रोना चिलाना बंद हुवा
तब जाके उन शैतानौ का जोर -जोर से
रोना चिलाना शुरू हुवा
चिलाने रोने की आवाज़ सुन
आस पड़ोस के सभी लोग आ गये
तब जाकर सभी लोग
आग है बुझा पाये
पर देर हो गयी थी तब तक
बेटी ने दुनिया छोड दी थी
ये देखकर शैतानौ के मन मे
खुशिया दौड़ गयी थी
माता -पिता को जब पता चला
उसकी बेटी जल गयी
बेहोश हो गयी माता ओर
पिता ने जोर की डार लगायी
देख न पाये वो अपनी बेटी को
बेटी इतनी जल गई थी
उसके दर्द को सोच कर उनकी
रूह तक काफ गयी थी
बेटी को इंसाफ दिलाने वो
आगे आना चाहते थे
उसके हत्यारों को वो
सजा दिलाना चाहते थे
पर गरीब थे बेचारे वो
कुछ न कर पाये
आत्महत्या मान लिया गया
उनकी प्यारी बेटी की मौत को
चरित्र उसका खराब बताया गया
अब ये सुनना ही बाकि था
एक पिता को अंदर से खत्म करने
के लिए बस इतना ही काफी था
शैतानो ने कुछ दिन मे एक
ओर बेटी को पकड़ लिया
ओर ये सिलसिला सालो से
आज तक है चल रहा
पर अब इस अपराध को हम
सबको रोकना होगा
समाज के हर एक व्यक्ति
को जागरूप करना होगा
न सहेगी अब एक बेटी
शैतानो के अत्याचार को
अब हर बेटी को मिलेगा स्वर्ग सा घर
जहाँ उसका सम्मान होगा
प्रण करते है आज हम सब
दहेज़ प्रथा को मिटायेगे
ओर एक पिता की प्यारी बेटी को
मरने से बचाएंगे
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